Stubble burning:rising pollution in India पराली का जलना:बढ़ता प्रदूषण

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नमस्कार दोस्तों मैं जयेन्द्र शंकर आज मैं आपको भारत में प्रदूषण में अहम योगदान[MAJOR CONTRIBUTER TO POLLUTION] देने वाले कारक जिसने भारत के   मेट्रो शहरों को गैस चेम्बर के रूप में बदल दिया है ऐसे  प्रदूषण[POLLUTION] के कारण के बारे में बात करेंगे और यह प्रदूषण है पराली के जलने[STUBBLE BBURNING] से होने वाला प्रदूषण | जानकारी अच्छी लगी हो इसे आगे भी दोस्तों को शेयर करें|

पराली[CROP RESIDUE OR STUBBLE] क्या है ?

खरीफ और रबी की फसलों को काटने के पश्चात जैसे मक्का,दालें गेहूं,चावल आदि के अवशेष जो खूंटी के रूप में खेतों में बच जाते हैं उन्हें पराली[STUBBLE] कहा जाता है|

पराली जलाने में अग्रणी राज्य

उत्तर भारत के विशाल उपजाऊ भूमि में स्थित राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पराली जलाने के बड़े मामले देखे जा सकते हैं।

पराली जलाने के कारण

  • विकल्पों का अभाव :-खलिहानों, बाग बगीचे ,अनुपयुक्त भूमि के अवैध कब्जे तथा उन्हें खेती योग्य भूमि बनाने के कारण आज किसानों के पास खेती के अवशिष्टों के भंडारण की ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है इसलिए उन्हें ना चाहते हुए भी उसे खेतों में ही जलकर नष्ट करना पड़ता है।
  • मौसम चक्र का बदलना :- ग्लोबल वार्मिंग के कारण तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण आज खेती के पैटर्न में तेजी से बताओ देखने को मिला है इसके कारण जल्दी से जल्दी तैयार करना पड़ता है।
  • लागत वृद्धि :- खेती में लागत बढ़ने के कारण किसान खेती के अपशिष्ट पदार्थ का भंडारण में होने वाले खर्च से बचना चाहता है और उसे खेतों में ही जलकर सस्ते में निपटाना चाहता है।
  • मजदूरों की कमी :- परंपरागत खेतिहर मजदूर आज खेती के कामों को छोड़कर बड़ी मात्रा में आज शहरों में फैक्टरी में पलायन कर रहा है जिसके कारण किसान के पास आज पर्याप्त मजदूर नहीं है और वह पराली को खेतों में ही जलाने के लिए मजबूर है।
  • मशीनीकरण :- हार्वेस्टर जैसे नवीन यंत्रों के आने से वे खड़ी फसलों को आधे से ही खेतों में छोड़ देते हैं इसके कारण बचे हुए आधे भाग को काटना और खेतों से हटाना एक बड़ी चुनौती बन जाता है और  पराली को जलाना ही उचित समझता है।
  • खाद के रुप में प्रयोग :- मिट्टी की ऊर्वरता क्षमता को बढ़ाने के लिए वह बाकी बचे हुए फसली अवशेषों को पराली के रूप में जलाता है जिससे वह राख बनाकर मिट्टी में अच्छे से खाद के रूप में मिल जाता है।

पराली से होने वाले प्रदूषण

पराली के जलने से हमारे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें जैसे  कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड तथा इसके साथ-साथ बड़ी मात्रा में धूल और राख के कण जिनका PM 2.5 से भी छोटा होता है वह वायुमंडल में हवाओं से मिल जाते हैं और कोहरे के साथ मिलकर स्माॅग का रूप ले लेते हैं जिससे शहरों में विजिबिलिटी कम हो जाती है,साँस लेने में परेशानी होती है,फेफड़ों के कैंसर के मामले देखे जाते हैं ।

पराली प्रदूषण रोकथाम के उपाय

  • हार्वेस्टर के साथ ऐसी मशीनों को लगाया जाए जो फसलों के अवशेषों को मिट्टी से उखाड़ कर उन्हें खाद बना सके।

 

 

  • ऐसी इंडस्ट्री और फैक्ट्री जैसे खाद बनाने वाली, पेपर बनाने वाली को सरकार बढ़ावा दे जो फसलों के अवशेषों को लेकर उन्हें अन्य उत्पादों में बदलते हैं।
  • खेती वाली जमीनों को चिन्हित करके उन्हें क्लस्टर में बाँटकर बायोडीजल सेंटर को स्थापित किया जाए और पराली को जलाने की बजाय किसानों से उसे खरीद कर बायोडीजल में बदला जाए।
  • किसानों के बीच पराली प्रदूषण व उससे होने वाले गंभीर बीमारियों के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ।
  • खेती में ऐसे एंजाइम को सरकार किसानों के बीच ले आये जो जल्द से जल्द फसली अवशेषों को  खाद बना सकते हों।
  • परंपरागत खेती गेहूं तथा चावल के अलावा सरकार किसानों के बीच फूलों की ,फलों की तथा सब्जियों की खेती को MSP के माध्यम से बढ़ावा दे ताकि बदल बदल कर फसलों को बोया जाए और पराली का निस्तारण आसानी से किया जा सके।
  • पराली जलाने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए फाइन लगाने पर विचार करना चाहिए।

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