Prayagraj Mahakumbh Mela 2025 के बारे जानिए: पूरी जानकारी
नमस्कार दोस्तों मैं जयेन्द्र शंकर हूँ, आज आपको प्रयागराज Prayagraj में लगने वाले सबसे बड़े स्नान पर्व महाकुंभ 2025 पर्व के बारे में संपूर्ण जानकारी देने जा रहा हूं जहां ऐसा माना जाता है कि स्वयं देवता भी महाकुंभ 2025 में आकर के इस तीर्थ में स्नान करते हैं। वैसे तो प्रयागराज तीर्थ की नगरी के रूप में विश्व भर में विख्यात है परंतु इस तीर्थ नगरी में लगने वाला महाकुंभ 2025 इस धरती को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना देता है। यदि जानकारी अच्छी लगी हो जैसे आगे भी दोस्तों को शेयर करें।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 का शास्त्रीय व वैज्ञानिक पक्ष
कुंभ मेले की सनातन परंपरा को हमारे समुद्र मंथन से जोड़कर देखा जाता है विष्णु पुराण में यह वर्णन मिलता है कि समुद्र मंथन करने के क्रम में देवताओं और राक्षसों के द्वारा 12 दिनों तक समुद्र मंथन का कार्य किया गया जिसमें कुल 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी जिसमें अंतिम रत्न के रूप में अमृत की प्राप्ति हुई थी। अमृत के प्राप्ति के क्रम में देवताओं एवं असुरों में युद्ध हुआ और इसी क्रम में अमृत कलश से चार बूंदे भारत के चार जगह पर गिरी जिसमें क्रमशः हरिद्वार ,प्रयागराज, उज्जैन और नासिक आते हैं तथा इन्हीं चार शहरों में हर 12 साल के बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है महाकुंभ के मेले के बारे में कोई पौराणिक साक्ष्य तो नहीं मिलते परंतु ऐसा माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा कुंभ स्नान की परंपरा शुरू की गई तब से इन चार स्थानों पर महाकुंभ के पावन आयोजन पर लाखों करोड़ों भक्त स्नान ध्यान करने बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
महाकुंभ 2025 के दौरान धार्मिक गतिविधियाँ
महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में पोस्ट पूर्णिमा के दिन 13 जनवरी से शुरू होगा तथा इसका समापन 26 फरवरी महाशिवरात्रि के दिन होगा।
संपूर्ण भारत से इस महाकुंभ के आयोजन मे सभी तेरह मान्यता प्राप्त अखाड़े, सभी आचार्य आश्रम, चारों शंकराचार्य पीठाधीश्वर प्रतिभाग करते हैं जिसमें बड़ी संख्या में नागा साधु सन्यासी के दर्शन सहज रूप में हो जाते हैं।
महाकुंभ में स्नान की शुरुआत हमारे सभी 13 अखाड़े के द्वारा किया जाता है जिसे शाही स्नान के रूप में जाना जाता है तत्पश्चात सभी लोगों को स्नान करने की अनुमति दी जाती है इस अवसर पर देश एवं विदेश के लाखों श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
महाकुंभ पर्व में भारतीय जानमनस में कल्पवास का बहुत बड़ा महत्व है। लोग अपने घर को छोड़कर इस पर्व में टेंट में त्रिवेणी संगम के किनारे रहते हैं और नित्य स्नान ध्यान पूजा साधु संतों का समागम एवं कथाओं को सुनकर के अपने जीवन को धन्य करते हैं।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार प्रयागराज में क्रमशः तीन नदियों गंगा ,यमुना, सरस्वती का संगम माना जाता है जिसमें गंगा और यमुना को तो प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है परंतु सरस्वती नदी जमीन के नीचे से बहती हुई गंगा और यमुना से मिलती है इसीलिए इसे त्रिवेणी संगम के रूप से भी जाना जाता है।
प्रयागराज के विभिन्न तीर्थ
लेटे हनुमान जी
इन्हें बड़े हनुमान जी ,किले वाले हनुमान जी ,बाँध वाले हनुमान जी के नाम से भी जाना जाता है जो संगम से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।इस मंदिर का इतिहास 600 से 700 साल पुराना है । यह एकमात्र ऐसा हनुमान जी का मंदिर है जहां हनुमान जी लेटे हुए मुद्रा में विद्यमान है तथा जमीन से 8 से 10 फीट नीचे हैं ।हनुमान जी अपने एक हाथ में अहिरावण को दबाए हुए हैं तथा हनुमान जी को प्रतिवर्ष गंगा माँ स्वयं जल से स्नान करने आती हैं जिसको देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं ।अकबर ने हनुमान जी की मूर्ति को हटवाने का बहुत प्रयास किया था परंतु यह मूर्ति टस से मस नहीं हुई अंतत वह हार मानकर अपने किले की दीवार को मंदिर से पीछे की ओर से खड़ी किया|
अक्षय वट

त्रिवेणी संगम से थोड़ी दूर पर अकबर का किला स्थित है जहां पर अकबर ने जबरन अक्षय वट व पातालपुरी मंदिर को अपने किले के अंदर कर लिया था वर्तमान में इस किले का अधिकांश प्रयोग भारतीय सेना कर रही है परंतु कई सालों के प्रयासों से अक्षय वट तथा पातालपुरी मंदिर को आम दर्शनार्थियों के लिए खोला गया है।
मानामेश्वर महादेव मंदिर

यमुना जी के किनारे भगवान भोलेनाथ का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन में तथा प्रत्येक सोमवार को रुद्राभिषेक एवं जलाभिषेक के लिए बड़ी मात्रा में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।
शंकर विमान मंडपम मंदिर

दक्षिण भारत के द्रविड़ शैली में बना 108 फीट ऊंचा मंदिर जो प्रयागराज संगम से थोड़ी दूर पर स्थित है ऐसा माना जाता है की आदि गुरु शंकराचार्य तथा प्रसिद्ध दर्शनशास्त्र के ज्ञाता कुमारिल भट्ट की पहली मुलाकात यही हुई थी जिसकी याद में इस मंदिर को बनाया गया है।
अलोपशंकरी भवानी मंदिर

संगम तट से नजदीक यह प्रमुख शक्तिपीठ स्थित है जहाँ माता सती का अंतिम भाग गिरा हुआ माना जाता है यहाँ कोई मूर्ति अवस्थित नहीं है बल्कि लकड़ी के अवशेष विद्यमान है।
ऋषि भारद्वाज मंदिर

प्रयागराज के कर्नलगंज में ऋषि भारद्वाज जो कि आयुर्वेद के संरक्षण माने जाते हैं का आश्रम स्थित है संगम बांध बनने से पहले गंगा और यमुना का संगम इसी आश्रम के किनारे हुआ करता था ।भगवान राम वनवास जाने के क्रम में महर्षि भारद्वाज के आशीर्वाद हेतु यहां पधारे थे ।वर्तमान में इसे और भी अधिक भव्य ,मनोरम रूप दिया गया है तथा एक मनोहरी पार्क के रूप में इसे विकसित कर दिया गया है।
श्रृंग्वेरपुर धाम

भगवान राम के परम मित्र निषाद राज की यह कर्मभूमि है तथा वनवास गमन के दौरान भगवान राम माता सीता सहित यहाँ पधारे थे। माँ गंगा के किनारे यह एक मनोरम स्थान स्थित है जो की बहुत ही शांत है ।वर्तमान में इसे तीर्थ के रूप में घोषित किया गया है तथा इसके सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है। साधक यहां शांत वातावरण में साधना करने हेतु तथा गंगा स्नान हेतु बड़ी संख्या में पधारते हैं।
आजाद पार्क

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक चंद्रशेखर आजाद जी को कौन नहीं जानता। यही प्रयागराज की वह धरती है जहां चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे ।इस जगह को आजाद पार्क के रूप में घोषित किया गया है तथा उनकी स्मृति में यहां पर मूर्ति का भी अनावरण किया गया है ।बड़ी संख्या में लोग यहां पार्क में टहलने ,बच्चे पार्क में खेलने तथा पर्यटक चंद्रशेखर आजाद जी की स्मृतियों को देखने पहुंचते हैं।
नागवासुकी मंदिर

दारागंज के समीप गंगाजी के तट पर यह मंदिर स्थित है जहाँ नागराज,माँ पार्वती,गणेश व भीष्मपितामह की मूर्तियाँ हैं,यहाँ नागपंचमी के दिन बड़ा मेला लगता है ।
लाक्षागृह